नीम के पत्ते!

– रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर की कविता “नीम के पत्ते” एक सशक्त प्रतीकात्मक रचना है, जो भारतीय समाज और उसकी मानसिकता पर तीखा व्यंग्य करती है। यह कविता न केवल प्राकृतिक परिवेश के माध्यम से मानवीय स्वभाव को उजागर करती है, बल्कि जीवन के विविध आयामों पर भी गहन दृष्टीकोण प्रस्तुत करती हैं।

कविता में नीम के पत्तों का उपयोग एक प्रतीक के रूप में किया गया है, जो भारतीय समाज के कठोर और विषम परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है। नीम का पेड़, जो अपने कड़वे पत्तों और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है, यहां उन कड़वी और अप्रिय सचाइयों को दर्शाता है जिन्हें समाज अक्सर अनदेखा कर देता है या स्वीकारने में संकोच करता है। पत्तों का कड़वापन जीवन की उन कटु वास्तविकताओं का प्रतीक है, जिन्हें हम सभी मेहसूस करते हैं।

उन्होंने इस कविता के माध्यम से जीवन के उस सत्य को उजागर किया है, जो चाहे कितना भी कड़वा हो, अंततः हमें उसकी वास्तविकता को स्वीकारना पड़ता है। उनका संदेश स्पष्ट है कि हमें उन कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करना चाहिए, जो जीवन के अपरिहार्य हिस्से हैं।

तू चाहे चाट मीठी-सी मिठाई, कड़ुवापन कटने वाला नहीं चाहे कितना भी तू कोशिश कर ले भाई।

“नीम के पत्ते तोड़े रस, में डुबो कर छोड़ें!

“नीम के पत्ते” कविता सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के उस पहलू की ओर इशारा करती है, जो कठिनाईयों और संघर्षों से भरा हुआ है, लेकिन साथ ही यह भी सिखाती है कि इन संघर्षों को स्वीकार कर उन्हें अपने जीवन का हिस्सा बनाना ही असली विजय है। रामधारी सिंह दिनकर की यह रचना साहित्यिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो पाठक को गहराई से सोचने और आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करती है।

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